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Showing posts from February, 2018

इतना सा ही है संसार

सबसे पहले मेरे घर का अंडे जैसा था आकार तब मैं यही समझती थी बस इतना सा ही है संसार। फिर मेरा घर बना घोंसला सूखे तिनकों से तैयार तब मैं यही समझती थी बस इतना सा ही है संसार। फिर मैं निकल गई शाखों पर हरी भरी थी जो सुकुमार तब मैं यही समझती थी बस इतना सा ही है संसार। आखिर जब मैं आसमान में उड़ी दूर तक पंख पसार तभी समझ में मेरी आया बहुत बड़ा है यह संसार।