एडमिरल रिचर्ड बर्ड जो ठान लेते थे, करके ही मानते थे। उन्होंने 12 वर्ष की उम्र में ही अपनी डायरी में लिख दिया था कि ‘मैंने फैसला कर लिया है, मैं उत्तरी ध्रुव पर पहुंचने वाला पहला आदमी बनूंगा।’ वह बचपन में ही एडमिरल पियरी द्वारा उत्तरी ध्रव तक पहुंचने के साहसिक संघर्षों से प्रेरित हो चुके थे। उन्होंने उसी समय से इस रोमांचक अभियान के लिए खुद को तैयार करना शुरू किया और आखिरकार यह करके भी दिखा दिया। उन्हें ठंडे मौसम में बहुत शारीरिक परेशानी होती थी, परंतु उत्तरी ध्रुव की ठंड का सामना करने के लिए उन्होंने अपने शरीर को कठोर बनाया। सर्दियों में भी वे कम से कम कपड़े पहनने लगे, ताकि उनका शरीर ठंड सहन करने का आदी हो जाए। इन सबसे फर्क तो पड़ा, पर उनका सबसे बड़ा इम्तिहान होना अभी बाकी था। वह अमेरिकी नौसेना में नौकरी कर रहे थे और इसके साथ-साथ उत्तरी ध्रुव के अपने अभियान पर भी काम कर रहे थे। मगर, एक दिन किसी दुर्घटना में उनके पैर की हड्डी टूट गई। यह उनके लिए बड़ा आघात था। मगर बात यहीं तक सीमित नहीं रही। 28 साल की उम्र में शारीरिक अक्षमता की वजह से उन्हें रिटायर कर दिया गया। ज्यादातर लोग इस
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